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काजल की कोठरी में कितनों ही सयानों जाये काजल का दाग तो लागे ही लागे है भाई। अन्ना की टीम ने जब राजनीति में आने का निर्णय लिया था तो शायद उनके दिमाग में यह बात नहीं आयी होगी। ऐसा इस लिए कहा जा सकता है जब टीम अन्ना ʺअब नहींʺ आन्दोलनों के दौरान यह कहती थी अधिकांश राजनीतिज्ञ ʺसंसद सदस्यʺ इस योगृय नही है कि उनपर गर्व किया जाय। या इसे यू कहा जाय कि इसी कारण से संसद पर भी न चाहते हुये उन्होने परोक्ष रूप से अपनी उंगली उठायी थी। अब जब कि अन्ना ने इस टीम को भंग कर दिया है और राजनीति में आने का मन बनाया है या यू कहा जाय कि निर्णय लिया है तो उन सारे तत्वों ने राहत की सांस ली है जिन्होने इस आंदोलन के चलते कटाक्ष्ा किये , इस लिए कि जितना ही लांक्षित करोगें उतना ही अन्ना की टीम परेशान होगी । सांसद बार बार यह कहते थे कि टीम अन्ना को राजनीति मे आना चाहिए तब उन्हे मालूम होगा कि एक सांसद या संसद की क्या मजबूरिया होती हैं। अब उन्हे यह कहने का मौका मिल गया है कि देखो मैं तो यही कह रहा था। इसी के साथ वे यह भी जोड。ना नही भूलते कि हम तो पहले से ही कहते थे कि अन्ना टीम का राजनैतिक एंजेंडा है। अब जाने या अनजाने बंदर के हांथ उस्तरा तो लग ही गया है। यह बात तो अन्ना की टीम भी जानती रही होगी कि एक राजनीतिज्ञ पर जिस प्रकार से आम जनता विश्वास नहीं करती उसी तरह से राजनीतिक की काजल की कोठरी में आने पर अब शायद ही टीम अन्ना पर लोग सीधे सीधे विश्वास करें। फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि किसी भी निष्कर्ष पर इतनी जल्दी पहुंचना उचित नहीं होगा। हां यह अवश्य कहा जा सकता है कि लगभग एक मुकाम पर पहुंचने के नजदीक होने के बावजूद जिस प्रकार से भ्रष्टाचार के विरूद्ध आंदोलन को समाप्त कर दिया गया इससे देश की जनता निराश अवश्य है। अब राजनैतिक दल बनाकर इतने जल्दी से इस मुकाम तक पहुचना शायद संभव नहीं हो पायेगा। और नेता तो खुश होगें ही । और इस आंदोलन से पीछे हटने से किसी को झटका लगेगा तो किसी को राहत मिलेगा। झटका उन्हें लगेगा जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस आदोलन को समर्थन दे रहे थे और राहत उनको मिलेगी जिसके लिए यह आंदोलन झटका देने वाला साबित हो रहा था। अन्ना का यह कहना कि भारत के सभी गांवों से यह राय मांगेगें कि ऐसा कौन का उम्मीदवार है जिसे चुनाव के दौरान टिकट देकर उनका समर्थन किया जाय और उन्हे चुनाव में जीताकर संसद में भेजा जाय। एसा संभव हो सकेगा इसमें संदेह है। आज के इस भौतिक वादी युग में जब कि गांवों में प्रधान के चुनाव को लेकर मारा मारी होती है तो अन्ना को आंदोन चलाने या उम्म्ीदवार बनने के लिए चिराग लेकर ढुंढना होगा।
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