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ई–गवर्वेंस कंपनियो का अजब खेल

समय की पुकार
समय की पुकार
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आजकल केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारों तक हर तरफ ई गवर्नेंस के चर्चे ज्यादा जाेर शोर से सुनाई पड रहे हैं। प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से अपने संबोधन में भी इसका खास तौर से जिक्र किया। इधर उत्तर प्रदेश की सरकार ने भी इस दिशा में महत्व पूर्ण कदम उठाते हुये लगभग एक दर्जन विभागों के २६ सेवाओं को आन लाइन करने की दिशा में महत्व पूर्ण कदम उठाये हैं। इसके लिए पी पी पी माडेल पर ज्यादा जोर दिया गया है। इसके पीछे जहां सरकारों की मंशा सरकारी सेवाओं को आम जनता तक पहुंचाने के लिए बिना किसी परेशानी और भ्रष्टाचार के सेवाओं को सुंलभ बनाने की मंशा जाहिर कर रही है वहीं गत कुछ महीनेां के अनुभवों से यह देखा गया है कि इस दिशा मे काम करने वाली संस्थायें इसे अपने खास मकसद से लागू कर रही हैं। प्राइवेट संस्थाओं ने इसे अपने लिए सुविधा जनक मानते हुये सरकारी सेवाओं की आड में अपनी सेवाओं को ज्यादा तवज्जो देने का काम किया है और सरकार द्वारा जारी सुविधाओं का अपने हित में उपयोग किया है। जहां तक जनता के लाभ की बात है तो उसे इसका पूरा लाभ मिलता दिखायी नहीे दे रहा है। इसका उदाहरण अगर उत्तर प्रदेश सरकार और इसके सहयोगी चार प्राइवेट कंपनियों के द्वारा सरकारी सेवाओं जैसे आय प्रमाण पत्र जाति प्रमाण पत्र निवास प्रमाण पत्र या इसी प्रकार से अन्य प्रमाण पत्रों को जनता को आन लाइन उपलब्ध कराने की बात है तो इसमे देखा जा रहा है कि प्राइवेट कंपनियों द्वारा कामन सर्विस सेंटर या जन सेवा केंन्द्र खोलने से लेकर जनता को इन सेंटरों से प्रमाण पत्र प्राप्त करने तक भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार व्याप्त है।

उत्तर प्रदेश में जिन प्राइवेट कंपनियों को यह काम सौंपा गया है इसमे एक कंपनी है ʺसहज र्इ विलेज लि०ʺ। जिलेां के हिसाब से इस कंपनी के हिस्से में प्रदेश के 17909 केंन्द्र लखनउ सहित पूर्वी जिलों के आये हें । इसमें वाराणसी जौनपुर मिर्जापुर आदि जिले हैं। इन जिलों में भ्रष्टाचार की शुरूआत सेवा प्रदाता कंपनी ʺसहज ई विलेज लि०ʺ द्वारा र्केन्द्रो के चयन प्रशिक्षण तथा केन्द्र संचालन के लिए आवयश्यक इनफ्रास्टक्चर में ही शोषण किया जाना शुरू हो गया। इसके लिए सरकारेां द्वारा बाकायदा आवश्यक धनराशि भी सहयोग के रूप में उपलब्ध करायी जाती है। लेकिन इन बी एल ई को कोई भी प्रषिक्ष्ण आदि की सुविधा उपलब्ध नहीें करायी जाती और फर्जी तरीके से सरकारी धन का दुरूपयोग किया जाता है।

उपरोक्त कंपनी पहले जब सरकार ने यह सेवा आनलाइन शुरू नहीे की थी तो उस समय के्न्द्रो को स्थापित और संचालित करने के लिए संचालको से एक लाख साठ हजार से लेकर दो लाख रूपये तक की डिमांड की गयी । इतनी बडी धनराशि लगाकर एक शिक्षित बेरोजगार क्या पाताॽ अतः यह योजना उस समय जोर नहीं पकड सकी। वर्तमान अखिलेश यादव जी की सरकार ने 1 अगस्त 2012 से आनलाइन यूपी पेार्टल के माघ्यम से विभिन्न विभागों की 26 सेवाओं के प्रमाण पत्र इन जनसेवा केंन्द्रो के माध्यम से जारी करने की घोषण की अौर शुरूआत की। अब इसके माध्यम से कुछ विशेष प्रकार के प्रमाण पत्र आय जाति निवास आदि मिलने शुरू हुये हैं । इसके अलावा अभी भी कई राजस्व आदि के विभागों के प्रमाण पत्र देने की घोषणा हवा हवाई ही है। अब अगर इन सेवओं के माध्यम से जो प्रमाण पत्र उपलब्ध कराया जा रहा है उसके बदले जहां उपभोक्तओं से 20 रूपये लिया जा रहा है वहीं संचालको को कंपनी द्वारा 4 रूपये 45 पैसे दिया जाता है। और इसके बदले कंपनी जो कागज उपलबध कराती है उसकी कीमत संचालकों से 6-50रूपये वसूलती है। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि 6-50 देकर संचालक को 4-45 रूपया लेना कितना मंहगा सौदा है। इसके चलते ज्यादातर संचालकों ने केंद्र को बंद कर दिया। इतना ही नहीं इसके बदले केन्द्र संचालकों से तहसीलों के लिए काटे्ज और प्रिंटर के टोनर आदि की भी माग की जाने लगी।

अब जब कि कुछ ही सही इन केंन्द्रों से कुछ प्रमाण मिलने शुरू हुये तो कुछ शिक्षित बेरोजगारेां ने केन्द्र संचालन करने में दिलचस्पी लेनी शुरू की । तब कंपनी ने सोचा कि क्यों न बहती गंगा मे हांथ घो लिया जाय और उसने केन्द्र खोलने के बदले 20000हजार रूपये लगायत 30000 तक की राशि बसूलनी शुरू कर दी। इसके पश्चात भी तरह तरह की शर्तें भी थोपनी शुरू कर दी । जैसे कि कंपनी की सेवाअेां का विस्तार और बिक्री करना तथा सेवाओं का प्रचार प्रसार करना। इसमें कंपनी की सेवाअों में मुख्य रूप से बीमा सेवा और सोलर लाइट आदि का प्रचार प्रसार और बिक्री प्रमुख है। यह शर्त भी कई किश्तों में रखी जाती है । पहले कंपनी 20000 रूपये की डी डी कंपनी के नाम बनवाती है फिर 20रूपये की अलग डी डी बनवाती हे। और जब दोनों बन जाते हैं तो कंपनी की तीसरी शर्त होती है कि अाप को केंन्द्र खोलने की अनुमति तभी दी जायेगी जब आप कंपनी की बीमा कंपनी से 10000 रूपये का बीमा करायेगें। चूंकि बेरोजगार व्यक्ति डी डी बंनवाकर फंस चुका होता है अतः उसे एक एक कर कंपनी फंसाती जाती है। इसके पश्चात अगर कंपनी केंन्द्र संचालन का अधिकार देती भी है तो उस पर तरह तरह की पाबदियां और अन्य नीजी सेवाओं की बिक्री पर ज्यादा जोर दिया जाता है और उस पर वार्षिक कोटा निर्धारित करती है और इसकी आड में केंन्द्र संचालकों का शोषण प्रारंभ हो जाता है। समय समय पर इस कंपनी के कार्यकर्ता मांगें पूरी न करने पर केन्द्र संचालक का पासवर्ड जाम कर देते हैं और उनसे अनेक प्रकार के गैर कानूनी लाभ नकदी या अन्य सेवाअों जैसा कि उपर बताया गया है की मांग करते हे। जो केन्द्र संचालक मांग पूरी कर देते हैं उन्हे तो ये पुनः संचालन का अधिकार दे देते हैं और जो नहीं देते उन्हें तरह तरह से परेशान किया जाता है। इनका एक मात्र उद्देश्य अपने कंपनी का हित होता है। सरकार की योजना जो जनता को अच्छी सेवा देने की होती है उसे वह अच्छी सेवा न देकर ये सेवा प्रदाता कंपनियां ʺ मेवा खानाʺ शुरू कर देती हैं। चूंकि इन कपिनियों का सीधा संबंध सरकार में बैठे लोगों जिम्मेदार अधिकारियों एवं कर्मचारियेां से होता है अतः ये कंपनियां उन्हें अपने मोह फांश में फांस लेती है और संचालक चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता।

इस कंपनी के खिलाफ विभिन्न न्यायालयों उपभोक्ता फोरमेा मे कई मामले लंबित हैं। एक केंन्द्र संचालक जिसमें अधिकांश शिक्ष्‍िात औेर बेरोजगार तथा अर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग ही होते हैं अदालतेां व फोरमेां में ज्यादा दिन तक मामले की पैरवी का खर्च नहीं उठा पाते और उनकी इसी मजबूरी का फायदा उठा कर कंनियां अपना उल्लू सीधा रखने में समर्थ रहती है। यहां तक विभिन्न मदों मे प्राप्त सरकारी धन का दुंरूपयोग भी कंपनिया धलल्ले से कर रही हेै। इस लेखक के पास एसे कई दस्तावेजी और आडियों एंव विजूअल सबूत मौजूद हैं जिससे इनकी कार्य प्रणाली के विषय मे आसानी से पता लगाया जा सकता है। अब आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि सरकारों की इस महत्वाकांक्षी योजना को ये कंपनियां किस तरह से लागू कर रही हैं ओर ये जिस प्रकार से लागू कर रही हैं अगर इसी प्रकार से लागू करती रही तो इसका फायदा किस प्रकार से जनता उठा पायेगी।

ये कंपनियां एक तरफ अपनी स्वयं की बेवसाइटों और शोसल मीडिया पर तरह तरह के डींगें मारती हैं और अपने पक्ष में की गयी पोस्टों को करीने से सजा कर पेश करती है वहीं दूसरी तरफ अपने खिलाफ अपने कंपनी की आलोचना या भ्रषटाचार को खालने वाली पोस्टों को ब्लाक कर देती हे। इसमें सहज कंपनी काफी आगे है।

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