समय की पुकार
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छन कर धूप मुंडेरे से मेरे आंगन में आती है।
सेाकर उठते हर मानव के मन का बहुत लुभाती है।।
बांधे मुठ्ठी मां कहती है बच्चे को ले गोदी में।
तेरे लिए पकड रखी हूं धूप कडाके सर्दी में।।
कलियेां पर लटके सबनम को दिखा दिखा मां कहती है।
देखो हंस –हंस कर झूल रहे ये नन्हें नन्हें मोती हैं।।
शिशु मुख चुंबन लेने को लगता है किरणें आती हैं।
इसी बहाने सारे जग की काया को सहला जाती हैं।।
कूद फांदकर पर्वत शिखरों को वृक्षों में डगर बनाती हैं।
प्यारी सखी धूप मेरी नित मुझसे मिलने आती है।।
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