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बिगाडना ही होगा कंपनियों का खेल

समय की पुकार
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पिछले दिनों हमने इसी पेज पर एक ब्लाग लिखा था जिसका शीर्षक था ʺ ई–गवर्नेंस सेवा की आड में मेवा खाती कंपनियांʺ । इसमें हमने यह दर्शाने की कोशिश की थी कि ई–गवर्नेंस की राह मे सबसे बडा रोडा इन्हें लागू करने वाली प्राईवेट कंपनिया ही हैं। इन कंपनियों का खेल केन्द्र निर्धारण से लेकर सेवाओं के आम नागरिकों तक वितरण तक होता है। पग पग पर ये अपने सिवा इस कार्य में संलग्न सभी लोगों का शोषण करती नजर आती हैं । पहले तो इन कंपनियों ने सरकारी सेवाओं को आम जनता तक सरल तरीकें से पहुंचाने के काम के नाम पर सरकारों से सौदेबाजी कर काम को अपनाती हैं और जब जनता को सुविधा देने की बारी आती है तो केंंन्द्र निर्धारण से लेकर डिलिवरी तक सभी स्तर पर मनमाने व्यवहार का अनुसरण करती है। इस प्रकार से एक सही कार्य को अंतिम स्तर पर पहुंचते पहुंचते उसकी एसी की तैसी कर देती है।

उत्तर प्रदेश ही नहीं अन्य प्रदेशों मे पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के आधार पर आम जनता को सरकारी सेवाओं को सुविधा जनक ढंग से पहुंचाने के नाम पर कई कंपनियों ने सरकार से संविदा किया लेकिन शर्तो का हर कदम पर इन्होने उल्लंघन किया और इसके बावजूद अनुदान और अन्य सुविधाये जो सरकार द्वारा दी जाती हैं वे प्राप्त करती रही हैं।इनमें मुख्यतः यह बात सामने आयी कि कंपनियेां ने सरकार से अनुंबंध के पश्चात अपना ʺखेलʺ शुरू कर दिया। पहले तो इनका खेल सरकारी योजना को लागू करने के लिए केन्द्रो के निर्धारण से शुरू हुआ। केन्दाे के निर्धारण में इन कंपनियों ने इस बात का पूरा ध्यान रखा कि सांप भी मर जाय लाठी भी न टूटे। केनद्र निर्धारण में इच्छुक अभ्यर्थयों से मनमाने शुल्क पसूले जाने लगे और कहने लगे कि इसके लिए सरकार की काेई गाइडलाइन नहीं है। बार बार ध्यान आकृष्ट करने के बावजूद सरकारों ने शिकायतो पर ध्यान नहीं दिया। एसा क्यों किया गया यह तो सरकार ही बता सकती है। वास्तव में जो कंपनियां इन केन्द्रो का निधारण करती हैं उनके पास पहले से ही और कई व्यावसायिक योजनाएं है। इन व्यावसायिक योजनाओं को लागू करने में सरकारी योजनाओं की आड में ये कंपनियेां मनमानेपन पर उतर आयीं। हांलाकि इन्होने सरकार द्वारा लागू योजनाओं को भी येन केन प्रकारेण चालू रखा। यहां एक बात गौर करने वाली है कि सरकारी योजनाओं के तहत कहने को तो २६ सेवाये उपलब्ध करानी थीं लेकिन मात्र आय प्रमाण पत्र जाति प्रमाण पत्र और निवास प्रमाण पत्र ही प्रमुख रूप से कंपनियों या सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जाता रहा। अब केन्द्र संचालकों को इन प्रमाण पत्रों को जारी करने के एवज में जो राशि मिलती कंपनी देती थी वह इतनी कम थी कि इसमें केंन्द्रो का संचालन संभव ही नहीं था। कपिनियां केन्द्र संचालको से इसके एवज में अनुबंध लंबी रकम जो बीस हजार से लेकर उपर तम मनमानी रूप से ली जाती थी। किन्हीं कारणों से केन्द्र संचालक अगर इतनी राशि उपलब्ध नहीं करा पाता था तो उसे बैंकों से लोन दिलाया जाता थां ओर मनमाने ढंग से अनुबध पत्र पर हस्ताक्षर करा लिये जाते थे। योजनाओं की आड मे होने वाले लाभ का ज्यादा मुल्यांकन कर संचालकों को सब्ज बाग दिखाये जाते हैं । बाद में इन्हें कंपनियों की अपनी सेवाये लेने पर मजबूर किया जाता है जैसे कि बीमा कराना या फिर इनके उत्पाद जो सोलर लाइट से लेकर अन्य उत्पाद हाते थे का बिकी करना। जो केंन्द्र संचालक कंपनियों की इन शर्तों को पूरा करने में असमर्थ रहती उनके बैंक गारंटी जब्त करने से लेकर मनमाने ढंग से किये गये अनुबध का धौंस देकर पासवर्ड को जाम करना और फिर चालू करने के नाम पर ब्लैकमेलिंग करना इनका आम काम हो गया था।

जब से केंन्द्र मे भाजपा की मोदी सरकार आयी उसका जोर ई–गवर्नंस की ओर हुआ तो इसका फायदा ये और भी मनमानी ढंग से उठानी शुरू कर दी । परिणाम यह हुआ कि उत्तर प्रदेश ही नहीं बिहार आदि राज्यों से भी इन कंपनियों के खिलाफ शिकायतें आने लगी। एक ही जगह पर कई कई लोगों को केेंन्द्र चलाने की अनुमति से लेकर तमाम सौदेबाजी के मामले सामने आने लगे। मैने भी इसी संबध में वाराणसी जिले के सांसद होने के नाते प्रधान मंत्री मोदी जी से निवेदन किया था कि इन कंपनियों का खेल बंद किया जाय और सरकारी सेवाओं को आईआरसीटीसी के तर्ज पर लागू किया जाय ताकि जनमा कहीं से भी सरकारी सेवाओं का लाभ सीधे उठा सके और उसे इन कंपनियों द्वारा संचालित केन्द्रो तक जाने की जरूरत ही न रहे। अब सूचना मिली है कि सरकार ने इस दिशा मे कदम बढा दिये हैं और अब कंपनियेां का खेल बिगडने वाला है। अब सरकार यह व्यवस्था करने जा रही है कि इन कंपनियों के द्वारा नियुक्त केंन्द्रो पर जाये बिना आम जनता सरकारी सेवओं को सरकारी पोर्टल के माध्यम से प्राप्त कर सकती हे। यहां यह उल्लेख करना समीचीन होगा कि इन गडबडी करने वाली कंपनियों में ʺसहजʺ काफी बदनाम हो गयी है। इस कंपनी की संविदा सरकार के साथ समाप्त हुये महीनेां बीत गया है लेकिन कंपनी जाते जाते संचालको की नियुक्ति के नाम पर लूट मचा रखी है ओर अभी भी मनमाने ढंग से केनद्र संचालाको केन्द्र खोलने की तथाकथित अनुमति देकर उनका शोषण् कर रही है जो एक अपराध की श्रेणी में भी आता है। आवश्यकता इस बात की है कि पूरे देश में आईआरसीटीसी की तर्ज पर योजना को लागू की जाय और कंपनियेां के साथ अगला अनुबंध न किया जाय।

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