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फोटो बिना हम जी नहीं सकते

समय की पुकार
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अभी ज्यादा समय नहीं बीता है जब सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया था कि अखबारों में सरकारों द्वारा जारी विज्ञापनों में राष्ट्रपति प्रधान मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त और किसी भी व्यक्ति का फोटो नहीं प्रकाशित किया जायेगा। इसमें प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के लिए भी यहीं हिदायत दी गयी थी। हांलांकि इस पर तमाम मुख्यमंत्रियों ने एतराज भी जताया था। आखिर जताते क्यों नहीं उन्हें सरकारी खर्च पर अपनी और अपने परिवार की फोटो लगाने से वंतिच जो कर दिया गया था। मैंने इस संबंध में एक ब्लाग इसी अंक में लिखा भी था। इसमें यह आशंका भी जतायी गयी थी कि ये प्रचार के भूखे लोग अपनी फोटो छपवाने का कोई न कोई तरीका ढूंढ ही निकालेगें। हुआ भी एसा ही। आज के देनिक जागरण के वाराणसी के अंक मे मुख्य पृष्ठ पर उत्तर प्रदेश सरकार ने एक विज्ञापन जारी किया है। हांलांकि इस विज्ञापन में कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया गया है कि यह विज्ञापन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी किया गया है। लेकिन जैसा कि मैने पहले भी कहा था कि सरकारी अपनी ढपली अपने ढंग से बजाती है और अपनी वाहवाहीं लेखों और अन्य तरीकों से छपवाती है। इस अंक मे भी एसा ही कुछ किया गया है। लेख के रूप में प्रकाशित इस विज्ञापन को प्रथम पेज पर प्रकाशित करने के साथ ही अखबार के नाम के ठीक बगल में सबसे उपर दायें तरफ प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव जी का फोटो प्रकाशित किया गया है। जैसा कि अक्सर देखा गया है कि दैनिक जागरण में जहां अखिलेश यादव जी का फोटों प्रकाशित किया गया है वहां उन लोगों के फोटो प्रकाशित किये जाते हैं जिनका अंदर के पृष्ठों पर किसी समाचार आदि से संंबंध होता है और उसका उल्लेख भी अखबार पृष्ठ संख्या देकर करता है। लेकिन अखिलेश के फोटों के साथ न तो किसी समाचार का संबंध है न ही किसी अन्य संदर्भ का उल्लेख है। इसका उदाहरण इसी अंक के इसी अखबार के तीसरे पृष्ठ पर दिये गये फोटो और समाचारों से देखा जा सकता है। इसमें न तो सरकार की उपलब्धियों को बखान किया गया है और न ही अखिलेश का फोटो है। अखबार में प्रकाशित इस अंक के सबसे दाये ओर advt प्रकाशित किया गया है। इससे यह तो सिद्ध होता है कि यह समाचार न होकर विज्ञापन है। अब प्रश्न उठता है कि आखिर यह विज्ञापन प्रकाशित किसने कराया है। यह तो या तो अखबार जानता है या फिर विज्ञापन प्रकाशित करवाने वाला।

इसके पूर्व भी यह देखा गया है कि सरकार अपनी वाहवाही लेखों के रूप मे फीचरों के रूप में प्रकाशित करवाती रही है। इसमें न तो हमें और न हीं अन्य किसी को कोई आपत्ति हो सकती है। लेकिन माननीय सुप्रीम कोर्ट की आंख में घूल झाेंक कर और उसके आदेशों का उल्लंधन कर सरकारी विज्ञानों में अपनी फोटो छपवाना निश्चित रूप से न्यायालय की अवमानना का मामला बनता है। ओर इसका संज्ञान लिया जाना अत्यंत ही आवश्यक है। विज्ञापनों में सकारों द्वारा जनता के पैसे पर अपनी और अपने परिवार का या पार्टी के नेताओं की फोटो छपवाना निहायत ही निंदनीय कार्य है। इससे कुछ अखबार वाले नाराज हो सकते हैं कि उनके लिये यह अलाभकारी कदम होगा। लेकिन उन्हें यह भी ध्यान रखना होगा कि जिस सरकार के पास छात्रों की छात्रवृत्त्‍ित प्रदान करने के लिए पैसे न हो और देख मे तमाम आपदाओं के पीडितों के लिए पैसे न हो उस सरकार द्वारा आये दिन उद्घाटनों समारोहों जन्म दिवसों आदि पर विज्ञापन छपवाने के लिए करोडों करोड रूपये कहां से आ जाते हैं। यह सरकारी धन के दुरूपयोग का मामला होने के साथ ही मामनीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशेों के उल्लंधन का मामला है और इसपर सरकार न्यायालय और अन्य तमाम लोगों केा विचार करना चाहिए और आवश्यक कदम उठाना चाहिए।

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