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असहिष्णु विपक्ष

समय की पुकार
समय की पुकार
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वैसी तो अभी दिल्ली दूर है। लेकिन ‚ अगर एसा मान लिया जाय कि आगामी चुनाव में केंन्द्र में कांग्रेस नीत गठबंधन की सरकार बनी और उसके मुखिया युवराज या रानी जी बनी और भाजपा नीत गठबंधन विपक्ष में हुआ ओर तब कांग्रेस की सरकार चलाते समय भाजपा या विपक्ष ठीक इसी प्रकार से जैसा कि गत लोक सभा सत्र मे और उसके बाद अब शरदकालीन सत्र में हंगामा मचाना शुरू कर देगी तो कांग्रेस को कैसा लगेगा। यह प्रश्न इस लिए भी उठाया जा रहा है कि अब लगता है कि कांग्रेस पार्टी या अन्य विपक्षी दल लगभग यह मन बना चुके हैं कि चाहे कुछ भी हो जाये मोदी की सरकार को राज्य सभा में नहीं चलने देना हैं। बात बात पर अनायास बिना किसी वजह से छोटी छोटी बातों को लेकर जिस प्रकार से संसद की कार्यवाही में व्यवधान डाला जा रहा हैै उससे तो यह लग रहा है कि कांग्रेस के एजेंडे में एक मात्र कार्य संसद की कार्यवाही में व्यवधान डालना ही रह गया है। एसा कयेां किया जा रहा है यह देश की जनता की समझ में नहीं आ रहा है। चाहे भूमि अधिग्रहण का मामला हो या अन्य कोई और मामला‚ एक तरफ तो कांग्रेस पार्टी कहती है कि यह विधेयक तो उसका ही था मोदी सरकार उसे लागू करके या कानून बना कर अपनी पीठ ठोंकना चाहती है दूसरी ओर वह उन्हीं ʺअपनीʺ विधेयकाें को पास नहीं कराती और जब संसद में इन मामलों पर बहस करने की बात की जाती है तो उसपर बहस भी नहीं करती।
वर्तेमान सत्र की बात की जाय तो पहले ही दिन से असहिष्णुता के मुद्दे को लेकर बहस की गयी। इसमें वे सभी मुदृदे उठाये गये जो उनके लिए आवश्यक थेै। ओर जब इस मसले पर उनकी पोल खुलती नजर आयी और प्रधान मंत्री ने बहस जा जबाब देना शुरू किया जो ये तथाकथित सहिष्णु लोग उनकी बात को सुन भी नहीं सके ओर सदन का बहिष्कार कर दिये । यह कैसी सहिष्णुता है कि दूसरों को सहिष्णुता का पाठ पढाने वाले विपक्ष के लोग अपने देश के चुने हुये प्रधान के प्रति इस प्रकार से असहिष्णु हो जांय। अगर यही काम भाजपा करती तो कहा जाता कि वह सांप्रदायिक है असहिष्णु है और भी बहत कुछ। जब कि प्रधान मंत्री अपने भाषण या जबाव मे किसी पर न तो कोई आरोप लगाये और न ही किसी के प्रति कोई अनुचित टिप्पडी की।
यह प्रकरण भी जब समाप्त हुआ तो अगले दिन विरोध के नाम पर विरोध करने के लिए और कुछ नहीं मिला तो गृहमंत्री राजनाथ सिंह को यह कहते हुये उदृघ्त किया गया कि उन्होने केन्द में मोदी की सरकार बनते ही कहा था कि यह सरकार पहली ʺहिन्दूसरकार ʺ है। जब उन्होने इसका जोर दार खंडन किया और कहा कि एसा उन्होने कभी नही कहा था। मामला जो था वह एक दम अलग किस्म का था। किसी की जूती किसी का सिर वाली कहावत को चरितार्थ किया गया। इसके बाद भी अपने कथन पर खेद प्रकट करने या माफी मांगने की कोेेई जरूरत महसूस नहीं की गयी। जब ये ही लोग उसी तरह के मामले पर अगले दिन शोर शराबा मचाने लगे जिसमें विदेश उपमंत्री बी०के० सिंह पर एक दलित की तुलना कुत्ते से कर डाली और मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग कर डाली। जब कि उन्होने एसा कुछ भी न कहने और अपने वक्तव्य को तोड मरोड कर कहने की बात दी थी। लेकिन उनकी सफाई को सुनना तो दूर और उल्टे चोर कोतवाल को डांटे वाली कहावत को चरितार्थ करते नजर आयै। आखिर यह दोगलापन क्येां। एक तरफ आप अपनी बात को मनवाने पर जोर देते है ओर न मामने पर असहिष्णुता का आरोप लगाते हैं वही दूसरी तरफ बिना किसी बात का बतंगड बनाते नजर आते है।
अभी तो संसद के वर्तमान सत्र की शुरूआत भर हुयी है अभी और बहुत कुछ देखने और सुनने को मिलेगा। लेकिन गत सत्र और वर्तमान सत्र में अभी तक हुये हंगामें अगर इसी तरह से जारी रहे और संसद की कार्यवाही बाधित हुयी तो इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि इसका कुपरिणाम देश को तो भुगतना ही होगा साथ ही साथ कांग्रेस को भी भुगतना होगा। क्येांकि वर्तमान सत्र में जी०एस०टी० जैसे महत्वपूर्ण विधेयक जो देश की दशा और दिशा सुधारने में एक महत्वपूण्र कदम हो सकते हैं को पास कराना जरूरी है। लगता है कि अभी तक कांग्रेस अपनी हार को पचा नहीं पायी है। और बिहार की चुनाव में महागठबंधन की जीत से उल्लसित है। लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि अभी भी दिल्ली उससे काफैी दूर है ओर अभी दिल्ली की गद्दी पर बैठने के लिए तीन साल के उपर इंतजार करना होगा। ओर अगर खदानखास्ता उसे दिल्ली की गद्दी पर बैठ भी गयी तो उसे चलाना कठिन हीे नहीं असंभव भी होगा क्योंकि तब उसे वही काटना होगा जिसे वह अब बो रही है। हां यह अवश्य होगा कि तब कांग्रेस का या युवराज या महारानी का सपना भले ही पूरा हो जाय देश का सपना पूरा नही हो सकेगा।

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