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मर्ज बढता ही गया ज्यो ज्यो दवा की

समय की पुकार
समय की पुकार
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आज ही वाराणसी के एक समाचारपत्र दैनिक जागरण में ʺ जन सुविधा केन्द्रों से मनमानी वसूलीʺ नाम के शीर्षक से एक समाचारप्रकाशित किया गया है जिसमे जिले के तमाम जन सुविधा केन्द्र जिसमे ʺसहज जन सुविधा केन्द्रʺ और ʺ लोकवाणीʺ सुविधा केन्द्र शामिल है ‚ के केन्द्र संचालको द्वारा तमाम सरकारी सुविधाओं के बदले उपभोक्ताओं से पंद्रह बीस रूपये के शुल्क के स्थान पर ५० से १०० रूपये यहां तक कि १५० रूपये तक की वसूली किये जाने का मामला सामने आने की बात कही गयी है और उन पर अंकुश लगाने की बात कही गयी है। पिछले सालो जब सरकार ने यह एलान किया कि अब उपभोक्ताओं को सरकारी सुविधाओ जिसमे प्रमुख रूप से आय‚ जाति‚ निवास और इसी प्रकार की अन्य दर्जनों सुविधाओ को लेने के लिए तहसीलों और जिला मुख्यालयों के चक्कर नहीं काटने होंगे बल्कि उनके गांव में ही ये सभी सुविधाये इन जन सुविधा केन्द्रों के माध्यम से मिलेगें। और इन सुविधाओं के लेने के लिए उन्हे नाम मात्र का शुल्क जो १५ रूपये से लेकर २० रूपये तक होगा देना होगा। इसके लिए प्रदेश में कुछ कंपनियों से सरकार ने अनुबंध किया और इन्हें ही इन सुविधाओं को इलेकट्रानिक रूप से देने का जिम्मा सौंपा। पहले तो इन कंपनियों ने नाम मात्र के शुल्क लेकर जगह जगह अपने सुविधा केन्द्र खोले । काफी दिनों तक इनका काम शुरू नहीं हो पाया तो लोगों का रूझान इस ओर से हट गया। लेकिन बाद में जैसे की सरकार ने सुविधाओं को देना शुरू किया वैसे ही इन कंपनियों ने मनमानी दिखानी शुरू कर दी। इनके और सरकार के बीच जो अनुबंध किया गया था उसके अनुसार प्रत्येक ६ गांव का एक क्लस्टर बनाना था और इनमें एक केन्द्र खोला जाना था जिसके द्वारा इस प्रकार की सुविधाये दी जानी थी। लेकिन जैसा कि देहातों में एक कहावत कही गयी है कि ʺ ज्यो ज्यों मुर्गी मोटी त्यो त्यों गांड सकेतीʺ । इसी तर्ज पर इन कंपनियेां ने जनता की आशाओं पर पानी फेरते हुये अपने नीजी स्वार्थ के चलते जहां एक – एक गांव में कई कई केन्द्र खोल डाले वहीं किसी किसी गांव में एक भी केन्द्र नहीं खुल सका। इसका कारण यह रहा कि इन कंपनियों ने केन्द्र खोलने के बदले मनमानी शुल्क पंजीकरण के नाम पर वसूलने शुरू कर दिये जो १०००० हजार से लेकर २५००० ‚ ३०००० रूपये तक था। यहीं नहीं चूंकि इन कंपनियेां के अपने कुद उत्पाद थे जैसे सोलर लाइट‚ इन्सूरेंस और इसी प्रकार के और भी वित्तीय कार्य जिसे ये इन्हीं केन्द्र संचालकों के माध्यम से कराने लगी। इससे यह सिद्ध हो गया कि इन कंपनियों का उद्देश्य अपना हित करना था न कि सरकारी सुविधाओं को जनता को सस्ती और सर्व सुलभ सुविधाओं का वितरण करना अतः आगे चलकर इन कंपनियों ने काफी पूंजी बनायी। आगे चल कर इन कंपनियों के द्वारा वे सभी कारनामें अंजाम दिये गये जो एक कंपनी या मुनाफाखोर लोग करते हैं। यहां आपको एक उदाहरण देकर समझाा सकता हूं कि ʺसहज ʺकंपनी अपना सेंटर चलाने वालों को तभी पासवर्ड और अन्य सुविधाये उपलब्ध कराती है जब केन्द्र संचालक इस बात पर सहमत होता है कि वह कंपनी के बीमा पालिसी को बेचेगा। ज्ञात हो कि यह पालिसी की बिक्री का काम स्वैच्छिक नहीं बल्कि कंपनी की अनिवार्य शर्त होती है। इसका प्रथम कदम तभी उठता है जब कि कंपनी की बीमा पालिसी को केन्द्र संचालक स्वयं पहले अपना बीमा कराता है और कम से कम इसके लिए २०००० हजार से लेकर ३०००० हजार रूपये अग्रिम जमा करने होते हैं। आप को यह ज्ञात होगा कि भारतीय जीवन बीमा निगम यां अन्य कंपनियों का बीमा करने वाले उसके अधिकृत एजेंट इसके बदले कोई जमा राशि स्वयं नहीं देते बल्कि कंपनी उनके काम के अनुसार उन्हें कमीशन देती है लेकिन ʺ सहजʺ कंपनी एसा न करके पहले एजेंन्ट जो केन्द्र संचालक के रूप में होते हैं उनसे पैसा लेती है। और यह एक बार नहीं बल्कि बार बार देना होगा। और अगर आपने यह शर्त पूरी नहीं की तो अापको केन्द्र संचालन के दायित्व से मुकित मिल जायेगी। और इसके कारण आप जो भी पैसा कंपनी में जमा किये रहेगें उसकी वापसी भी नहीं होगी। कंपनी के मुख्यालय और केन्द्र का संचालन करने वाले एक उपभोक्ता के बीच इस संबध में हुयी बातचीत का रिकार्ड हमारे पास मौजूद है। जिस किसी को भी जरूरत होगी उपलब्ध करा दिया जायेगा। इतना ही नहीं कंपनी ने सरकार के उस शर्त का भीउल्लंधन किया जिसमें कहा गया था कि ६ गांव के बीच एक केंन्द्र खोला जायेगा। अगर उदाहरण के रूप में देखा जाये तो वाराणसी के पिंडरा ब्लाक व पिण्डरा तहसील कें अंतर्गत मंगारी बाजार का लिया जा सकता है। यहां केन्द्र खोलने के लिए कंपनी ने जिस संचालक को जिम्मा दिया था उसने खुद न चलाकर अपने एक रिश्तेदार को दे दिया जो गांव के बाहर रहता है। और मंगारी बाजार में कम से कम आधा दर्जन केन्द्र चल रहे हैं जो नियमतः इस गांव में नहीं होने चाहिए बल्कि इन्हें वहां खोला जाना चाहिए जहां के लिए इन्हे खाेलने की अनुमति प्रदान की गयी है। इनमें एक केेन्द्र संचालक ने ʺबूंचीʺ गांव के लिए केन्द्र खोलने की अनुमति ली लेकिन वह मंगारीबाजार मे ंयुंनियन बैंक के पास खोल लिया है। जब कि इसका मूल गांव यहां से तीन चार कि०मी० दूर है। एक अन्य केन्द्र संचालके वाराणसी जिले के जिलधिकारी द्वारा गोद लिये गये गांव में ʺबैकुण्ठपुरʺ में खोलने की अनुमति लिये हुय है जो वहां न खोलकर मंगारी बाजार में खोल लिया है। इसी प्रकार से एक अन्य केन्द्र संचालक ʺ राजेन्द्र मेडिकलहालʺ के मालिक के लडके ने खोला है जो मूल रूप से मंगारी बाजार का सेंन्टर नहीं है। इसी प्रकार से बाबतपुर रेलवे के पास आटो स्टैेंड के पास मिश्रा कटरा में खोला गया है ‚ वह भी यहां का नहीं है। निष्चित रूप् से ये सभी केन्द्र ʺ सहजʺ कंपनी के द्वारा अवैध रूप् से ली गयी राशि के बदले खोले गये हैं जिन्हे खोलने का आधिकार व आधार दोनेा इन स्थानों के लिए नहीं है। स्वाभाविक है कि इनके द्वारा अपने मालिक को दिये गये रूपये की वसूली तो करनी ही है। इनमें कई केन्द्र संचालक निःशुल्क सेवायें जैसे आधार कार्ड के पंजीकरण का है ‚ उसमें भी ५० रूपये से १०० रूपये तक वसूली कर रही हैं। पहले तसहीलों में ५० सौ रूपये देकर लोग तुरंत प्रमाण पत्र पा जाते थे लेकिन अब उससे भी ज्यादा देकर और हफ्तो ही नहीं पखवारों और महीनेां बाद मिल रहा हैै। वह भी आधी अधूरी सूचनााअेां के साथ ।
अब प्रश्न उठता है कि जब कोई केन्द्र संचालक इतनी राशि देकर केन्द्र का संचालन करेगा तो वह कोइ दानी व्यक्ति तो होगा नहीं । वह भी अगर केंन्द्र खोलता है तो उसकी भी कोई मजबूरी होगी और इनमें अधिकांश बेरोजगार युवक व युवतियां हैं। जिन्होने बैंको से लोन लेकर या अन्य सूत्रों से प्राप्त कर धन लगाया होगा तो वह भी दो पैसा कमाना चाहेगा। और सारा खेल इसी कमाने के चक्कर मे होता है । जब कंपनी कमाने के चक्कर मे है तो केन्द्र संचालक क्यों नहीं होगा। बस यहीं पर आकर सारा खेल ʺ सुविधा ʺ और ʺ सहजʺ का समाप्त हो जाता है और काली कमाई और भ्रष्टाचार का शुरू हो जाता है। फिर की मंशा कि सारी सुविधा एक जगह एक साथ कम लागत पर आकर समाप्त हो जाती है। मजेदार बात यह है कि सरकार खुद ही नहीं चाहती कि कंपनियों के इस अनुचित खेल से उपभोक्ताओं को कोइ्र लाभ हो। सरकार के पास इस प्रकार की तमाम शिकायतें की गयी लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुयी। एसा क्येां हुआ यह तो सरकार और उसके नुमाइंदे ही बता सकते हैं। इस पर तो यहीं कहा जा सकता है कि पूरे कुएं में ही भांग पडी हुयी है। मजेदार बात यह है कि ʺ सहज ʺ कंपनी ने सरकार के द्वारा नियत की गयी तिथि के बाद भी लाइसेंस बांटे और मनमानी वसूली की जिससे केन्द्र संचालको ंमे असंतोष है।
इस प्रकार से प्रधान मंत्री मोदी जी और उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री जी के डिजिटलाइजेशन के सपने को ये कंपनियां चूर चूर कर रही है। सरकार जैसे जैसे सुविधाओं का केन्द्रीकरण कर रही है वैसे वैसे इन कंपनयों का खेल चल रहा है। यहां एक सुझाव देना चाहेेगें कि जिस प्रकार से आईआरसीटीसी के द्वारा रेलवे का टिकट आन लाइन पैसा पेमेंन्ट कर लोग प्राप्त कर लेते हैं उसीप्रकार से आनलाइन पेमेन्ट और आवश्यक कागजात संलग्न करने के पश्चात उपभोक्ता को सीधे उसके ईमेल पर भेज दिया जाय या साईट से डाउनलोड करने की सुविधा प्रदान कर दी जाय। क्या एसा हो सकता है । इस बात पर प्रधान जी और मूुख्य मंत्री जी को विचार करना होगा।

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